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शब्दसागर

शब्दसागर एक राष्ट्रीय त्रैमासिक, सहकर्मी-समीक्षित , रेफर्ड, ओपन एक्सेस, ऑनलाइन शोध पत्रिका है। जिसका ध्येय साहित्य, समाज, साहित्य और संस्कृति का संचय करना है और इस विस्तृत भंडार को सम्पूर्ण जगत के समक्ष निशुल्क पेश करना है। "शब्दसागर" में शोध आलेख प्रकाशन को भी निशुल्क रखा है, ताकि सब इस साहित्य - समाज - संस्कृति के संरक्षण में अपना यथासंभव योगदान देकर इसे और विस्तृत बना सकें। इस शोध पत्रिका की शुरुआत मुख्य रूप से शोधकर्ताओं की सहायता करने और ज्ञान और अनुसंधान के विचार साझा करने के उद्देश्य से की है। संवैधानिक रूप से हिन्दी भारत की राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जानेवाली भाषा है। परंतु आज फीजी, मॉरीशस, सूरीनाम, यूरोप, अमेरिका, नेपाल आदि देशों में हिंदी का एक नया व प्रबल चित्र उभर रहा है। गुण और परिमाण में समृद्ध, यह समर्थ और वैज्ञानिक लिपि वाली भाषा देश-विदेश में आधुनिक चुनौतियों के बिच संघर्ष करते हुए विश्वव्यापी बन रही है। शब्दसागर में प्रकाशित शोध आलेखों में व्यक्त विचार, आशय, तथ्य आदि स्वयं लेखक के द्वारा लिखित अथवा संकलित हैं। उससे संपादकीय सहमति अनिवार्य नहीं है। शोध आलेखों की समीक्षा में शोध आलेख लेखन में अपनाई गयी शोध प्रक्रिया, दिए गए तथ्यों/सत्यता, सन्दर्भ आदि के विषय में मान्य समीक्षकों के द्वारा परीक्षण का प्रयास होता है। किन्तु साधनों की सीमा के कारण त्रुटियाँ सम्भाव्य हैं, गलत तथ्यों के प्रस्तुतीकरण की समस्त जिम्मेदारी लेखकों की है। प्रकाशन किसी भी शोध प्रक्रिया का अंतिम एवं अनिवार्य चरण है। शोध निरर्थक है यदि वह लोगों के संज्ञान में नहीं है। यह एक श्रृंखला क्रिया की तरह है, प्रत्येक अनुसन्धान में कुछ ऐसे अवयव होते हैं जो एक अन्य स्वतंत्र अनुसन्धान की मांग करते हैं अथवा उसमें ऐसे विचार दृष्टि होते है जो अन्य शोधों को प्रेरित करतें हैं। अतएव व्यापक सामाजिक हित में शोध का प्रकाशन अनिवार्य है। शब्दसागर त्रैमासिक शोध पत्रिका है जिसमें साहित्य, समाज, भाषा और संस्कृति विषयों से सम्बंधित सभी उपविषयों के मौलिक शोध-पत्र, शोध समीक्षा, विचार, लेखों आदि का प्रकाशन किया जाता है। शोधकर्ता हिंदी भाषा में अपने शोध पत्र भेज सकते हैं।

शोध आलेख निम्नलिखित बिन्दुओं के अनुसार लिखित हो -

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